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Opium Farming

किसान अफीम की खेती से कमा सकते हैं तगड़ा मुनाफा, कैसे ले सकते हैं लाइसेंस जानें

किसान अफीम की खेती से कमा सकते हैं तगड़ा मुनाफा, कैसे ले सकते हैं लाइसेंस जानें

अफ़ीम (Opium or opium poppy (ओपियम पॉपी); वैज्ञानिक नाम : lachryma papaveris) को मादक पदार्थ के तौर पर जाना जाता है। इसका उपयोग लोग प्रारम्भिक तौर पर नशा करने के लिए करते थे, इसलिए सरकार ने इसकी सार्वजनिक खेती पर बैन लगा रखा है। चूंकि अफीम का इस्तेमाल औषध उद्योग में दवाई बनाने के लिए किया जाता है, इसलिए सरकार सीमित किसानों को इसकी खेती के लिए लाइसेंस प्रदान करती है। इस लाइसेंस के माध्यम से किसान एक लिमिट में अफीम का उत्पादन करके सरकार को बेच सकते हैं। इससे किसानों को अच्छा ख़ासा मुनाफा होता है, क्योंकि सरकार इसे बेहतर भाव के साथ खरीदती है। आइये समझते हैं कि इसकी खेती के लिए लाइसेंस कैसे प्राप्त किया जा सकता है ?

अफीम की खेती के लिए लाइसेंस प्राप्त करने की प्रक्रिया

अफीम की खेती (Opium Farming) सरकारी अधिकारियों की कड़ी निगरानी में होती है। ऐसे में बिना लाइसेंस के इस खेती को करना, खतरे को दावत देना है। भारत में अफीम की खेती के लिए नारकोटिक्स विभाग (Central Bureau of Narcotics / केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो) लाइसेंस जारी करता है। इसलिए लाइसेंस प्राप्त करने के लिए किसानों को सर्वप्रथम नारकोटिक्स विभाग से संपर्क करना होगा। लाइसेंस के लिए नारकोटिक्स विभाग के नियम कायदे उनकी वेबसाइट में उपलब्ध हैं, जहां पर जाकर किसान इसकी जानकारी ले सकते हैं। नारकोटिक्स विभाग से मंजूरी मिलने के बाद किसान अफीम की खेती की जानकारी के लिए जिला बागवानी अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं।


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देश में हर जगह वैध नहीं है ये खेती

अफीम की खेती के लाइसेंस को प्राप्त करने के लिए हर किसान आवेदन नहीं कर सकता, क्योंकि केंद्र सरकार ने देश के कुछ चुनिंदा स्थानों में ही अफीम की खेती की अनुमति दी है। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश के नीमच जिले में और उसके आस पास सरकार द्वारा अफीम की खेती की स्वीकृति दी जाती है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में भी अफीम की खेती के लिए सरकार की तरफ से किसानों को लाइसेंस दिया जाता है। [caption id="attachment_10912" align="alignnone" width="1200"]अफ़ीम की खेती (Opium Poppy Farm) अफ़ीम की खेती (Opium Poppy Farm)[/caption]

अफीम की खेती के लिए इन बीजों का करें प्रयोग

वैसे तो अफीम की खेती के लिए सरकार की तरफ से कई प्रकार के बीज उपलब्ध कराये जाते हैं, लेकिन किसान जवाहर अफीम-16, जवाहर अफीम-539 और जवाहर अफीम-540 जैसे बीजों को उगाना काफी पसंद करते हैं, क्योंकि इन बीजों के प्रयोग से उत्पादन ज्यादा होने के साथ-साथ अफीम की क्वालिटी भी बेहतर प्राप्त होती है। इसके अलावा नारकोटिक्स विभाग के कई इंस्टीट्यूट अफीम पर रिसर्च करते रहते हैं और किसानों को समय-समय पर नए बीज उपलब्ध करवाते हैं। एक एकड़ खेत में अफीम की खेती करने के लिए कम से कम 6 किलो अफीम का बीज इस्तेमाल किया जाता है।


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किस प्रकार से तैयार होती है अफीम

अफीम की फसल 4 महीने की फसल है। बुवाई के 100 दिन बाद अफीम का पौधा परिपक्व हो जाता है और उसमें डोडे निकल आते हैं। इस डोडे से ही अफीम निकलती है, जिसके लिए प्रतिदिन इसमें चीरा लगाया जाता है, जिससे अफीम तरल रूप में रिस कर बाहर आ जाती है, जिसे किसी धारदार हथियार या हसिया से एकत्र कर लिया जाता है। सनद रहे कि अफीम एकत्र करने का काम धूप निकलने के पहले ख़त्म हो जाना चाहिए। यह प्रक्रिया अगले कुछ दिनों तक चलती रहती है। इसके बाद बचे हुए डोडे को धूप में सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। सूखने के बाद मसाले के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है। फसल के अंत में नार्कोटिक्स विभाग किसानों से अफीम खरीद लेता है, जिसके लिए किसानों को वाजिब दाम भुगतान किया जाता है।
बंगाल में सीएम ममता बनर्जी कराएंगी अफीम की खेती, विरोधियों से भी मांगा साथ

बंगाल में सीएम ममता बनर्जी कराएंगी अफीम की खेती, विरोधियों से भी मांगा साथ

अफ़ीम (Opium or opium poppy (ओपियम पॉपी); वैज्ञानिक नाम : lachryma papaveris) की खेती देश भर में बैन है. लेकिन 4 राज्यों को अफीम की खेती करने की छूट मिली हुई है. लेकिन अब इन 4 से 5 राज्य की गिनती बढ़ाने में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जुट चुकी हैं. ताजा मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री इन दिनों राज्य में अफीम की खेती की मांग कर रही हैं, जिसके लिए उन्होंने केंद्र को एक पत्र भी लिखा है. ममता बनर्जी की मानें तो आमतौर पर खसखस या पोस्त दाना इन दिनों इतना ज्यादा महंगा हो गया है कि राज्य में उनकी खरीद हो पाना मुश्किल है.

खाद्य बजट पर चर्चा के दौरान कही बात

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विधानसभा में खाद्य बजट पर चर्चा के दौरान अपनी बात कही. उन्होंने ये भी कहा कि, बंगाल में पोस्तो यानि की खसखस के बिना सब अधूरा है. क्योंकि बंगालियों के खाने का यह अहम हिस्सा है. आलू पोस्तो बंगालियों का सबसे पसंददीदा खाना है. साथ ही पोस्तो बड़ा भी बंगाली खूब चाव से खाते हैं. ममता बनर्जी ने कहा कि, बंगालियों के खाने में हर दिन ये मेन्यु में होता है, उसके बाद भी इसकी खेती आखिर पश्चिम बंगाल में क्यों नहीं की जाती. अगर इसकी खेती दूसरे राज्य में हो सकती है, तो बंगाल में करने में क्या हर्ज है? सीएम ममता बनर्जी ने कहा कि, हम इसकी खेती कृषि फार्म में करेंगे , क्योंकि हमारे पास पहले से ही कई फार्म उपलब्ध हैं. इतना ही नहीं, उन्होंने ये भी कहा कि, हम पश्चिम बंगाल में अफीम उगा सकते हैं, जिस पर उन्होंने विरोधियों से समर्थन मांगा.


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ख़ास है आलू पोस्तो और पोस्तो बड़ा

आलू पोस्तो और पोस्तो बड़ा पश्चिम बंगाल के बंगालियों के लिए बेहद कास व्यंजन है. यहां पर आलू के साथ खसखस को पीसकर सब्जी बनाई जाती है. जिसे आलू पोस्तो कहते हैं. यह सब्जी बंगाल के ज्यादातर घरों में बनाई जाती है. लेकिन पश्चिम बंगाल में पोस्तो की कीमत काफी ज्यादा है, जिस वजह से हर कोई इसे खरीद नहीं सकता. इसके आलवा पोस्तो का बड़ा भी पोस्तो को पीसकर तैयार किया जाता है. बंगाल की यह दोनों पारम्परिक डिशेज हैं, जिस वजह से सीएम ने पोस्तो की खेती राज्य में करने की बात कही.

आसमान छू रहे खसखस के दाम

बंगाल में खसखस एक हजार रुपये किलो तक बिक रहा है. जिसे लेकर सीएम ममता बनर्जी ने कहा कि अन्य राज्यों से भारी कीमत में पोस्त दाना खरीदना पड़ रहा है. जिस वजह से सीएम ममता बनर्जी ने बंगाल में अफीम की खेती करने के लिए केंद्र को एक पत्र लिखा है. उनका कहना है कि, राज्य में अफीम उगाएंगे तो हम उन्हें एक हजार के बजार सौ रुपये प्रति किलो की दर पर खरीद सकेंगे.

पोस्तो नहीं है ड्रग्स

विरोधी दलों से समर्थन मांगते हुए ममता बनर्जी ने कहा कि, फैसला लें और केंद्र को पत्र लिखें, क्योंकि पोस्तो को ड्रग नहीं है. पोस्त महंगा है, क्योंकि इसकी खेती कुछ ही राज्यों में की जाती है. लेकिन अफीम खेती से बंगाल के लोग इससे बने व्यंजनों का स्वाद चख पाएंगे और किसानों को मुनाफा भी होगा.